Saturday, March 9, 2013

Indian Man, Jadav "Molai" Payeng, Single-Handedly Plants A 1,360 Acre Forest In Assam


More than 30 years ago, a teenager named Jadav "Molai" Payeng began planting seeds along a barren sandbar near his birthplace in India's Assam region, the Asian Age reports.

It was 1979 and floods had washed a great number of snakes onto the sandbar. When Payeng -- then only 16 -- found them, they had all died. "The snakes died in the heat, without any tree cover. I sat down and wept over their lifeless forms," Payeng told the Times Of India. "It was carnage. I alerted the forest department and asked them if they could grow trees there. They said nothing would grow there. Instead, they asked me to try growing bamboo. It was painful, but I did it. There was nobody to help me," he told the newspaper. Now that once-barren sandbar is a sprawling 1,360 acre forest, home to several thousands of varieties of trees and an astounding diversity of wildlife -- including birds, deer, apes, rhino, elephants and even tigers. The forest, aptly called the "Molai woods" after its creator's nickname, was single-handedly planted and cultivated by one man -- Payeng, who is now 47.According to the Asian Age, Payeng has dedicated his life to the upkeep and growth of the forest. Accepting a life of isolation, he started living alone on the sandbar as a teenager -- spending his days tending the burgeoning plants.
Today, Payeng still lives in the forest. He shares a small hut with his wife and three children and makes a living selling cow and buffalo milk, OddityCentral.com reports. According to the Assistant Conservator of Forests, Gunin Saikia, it is perhaps the world’s biggest forest in the middle of a river.
"We were surprised to find such a dense forest on the sandbar," Saikia told the Times Of India, adding that officials in the region only learned of Payeng's forest in 2008. Finally, Payeng may get the help -- and recognition -- he deserves. "[Locals] wanted to cut down the forest, but Payeng dared them to kill him instead. He treats the trees and animals like his own children. Seeing this, we, too, decided to pitch in," Saikia said.

Friday, September 28, 2012

Indian chef who quit the job to feed homeless and mentally disabled


He is Mr. Narayanan Krishnan, an Indian chef who was turned into a social worker. He quit his career as a leading chef in Europe and began supplying meals to the homeless in Madurai, Tamil Nadu, India, beginning in 2002.


Krishnan founded his nonprofit Akshaya Trust in 2003, which helps to feed the homeless and mentally-disabled in Madurai, Tamil Nadu. He serves breakfast, lunch and dinner to 400 indigent and elderly people in Madurai.

He also provides haircuts and shaves to give extra dignity to those he serves.

During a visit to his family, before heading to Europe, he said,
"I saw a very old man, literally eating his own human waste out of hunger. I went to the nearby hotel and asked them what was available. They had idli, which I bought and gave to the old man. Believe me, I had never seen a person eating so fast, ever. As he ate the food, his eyes were filled with tears. Those were the tears of happiness."
more info from http://coffeewithsundar.com/100th-interview-narayanan-krishnan-cnn-hero-of-the-year-2010/

Krishnan can be contacted at +91 9843319933
 

Saturday, February 18, 2012

धुन के पक्के, समर्पित गीता प्रचारक श्री गोपाल रत्नम…

तमिलनाडु के कोयम्बतूर नगर के आसपास के गाँवों में एक दाढ़ीधारी व्यक्ति को भगवद गीता पर प्रवचन देते अमूमन देखा जा सकता है। ये सज्जन हैं, 14 वर्षों तक RSS के पूर्व प्रचारक रहे श्री गोपालरत्नम, एम टेक की पढ़ाई पूरी कर चुके गोपाल जी ने अपना समूचा जीवन भारत के उत्थान, हिन्दू संस्कृति के प्रचार एवं गीता ज्ञान के प्रसार में लगा दिया है।



श्री गोपालरत्नम अधिकतर अपनी मारुती अल्टो कार में ही निवास करते हैं। वे सुबह से लेकर रात तक कोयम्बटूर के आसपास के गाँवों में इसी कार से घूमते हैं। प्रत्येक गाँव में श्री रत्नम तीन दिन निवास करते हैं तथा भगवदगीता पर प्रवचन देते हैं। अपने प्रवास के पहले दिन वे "गीता और व्यक्ति", अगले दिन "गीता और परिवार" तथा तीसरे दिन "गीता और समाज" विषयों पर अपने विचार ग्रामीणों तक पहुँचाते हैं। ऐसा वे बिना किसी प्रचार अथवा भीड़भाड़ एकत्रित किए करते हैं।

अपने प्रोजेक्ट का नाम उन्होंने "In Search Of ChandraGupta" (चन्द्रगुप्त की खोज में) रखा है। अभी तक के अपने अभियान के दौरान उन्होंने 18 समर्पित नवयुवकों को अपने साथ जुड़ने के लिए, उनका चुनाव किया है। ये सभी नवयुवक हिन्दुत्व, भगवदगीता एवं भारतीय संस्कृति के प्रति पूर्ण समर्पित हैं। ये सभी युवा शराब-जुआ एवं दहेज जैसे समस्त प्रकार के व्यसनों और कुरीतियों से मुक्त हैं। श्री गोपालरत्नम ने इन सभी युवकों को अपने तरीके से समाजसेवा का प्रशिक्षण दिया है, आसपास के गाँवों में ये युवक जाति-धर्म से ऊपर उठकर गरीबों के कल्याण के लिए निःस्वार्थ भाव से उनके शासकीय कार्य (जैसे राशन कार्ड बनवाना, गैस कनेक्शन के कागज़ात, वोटर आईडी, वृद्धावस्था पेंशन, वरिष्ठ नागरिक प्रमाण पत्र एवं सहायता इत्यादि) मुफ़्त में करते हैं।

हाल ही में सम्पन्न हुए कोयम्बटूर नगरीय निकाय के चुनाव में इन 18 युवकों को उन्होंने चुनाव में भी उतारा, इन्होंने मतदाताओं को अपने कार्यक्रम तथा समाजसेवा के बारे में घर-घर जाकर बताया तथा चुनाव जीतने पर वे क्या-क्या करना चाहते हैं यह भी विस्तार से बताया। कम से कम पैसा खर्च करके किये गये इस चुनाव अभियान के उम्दा नतीजे भी मिले, तथा इन 18 युवकों में से एक श्री सतीश ने मेट्टुपालयम नगर पालिका में द्रमुक-कांग्रेस-अन्नाद्रमुक के करोड़पति प्रत्याशियों को हराकर पालिका अध्यक्ष का चुनाव जीता, जबकि तीन अन्य युवक भिन्न-भिन्न स्थानों पर पार्षद (Corporator) भी बने…। 

स्वभाव से शांतिप्रिय, कम बोलने वाले एवं मीडिया से दूर रहने वाले श्री गोपालरत्नम कहते हैं कि शांति से एवं योजनाबद्ध तरीके से की गई सच्ची जनसेवा को आम आदमी निश्चित रूप से पसन्द करता है। इस कार्य की प्रेरणा को वे संघ की कार्यपद्धति का नतीजा बताते हैं और उन्हें विश्व की सबसे प्राचीन हिन्दू संस्कृति पर गर्व है।

श्री गोपाल रत्नम जैसे निस्वार्थ सेवाभावी एवं हिन्दू धर्म प्रचारक को सादर नमन… ऐसे हजारों प्रचारक संघ से प्रेरणा लेकर बिना किसी प्रचार के समाजसेवा कार्य में लगे हुए हैं। ऐसे लोग ही सच्चे अर्थों में महान कहलाने लायक हैं और यही हिन्दुत्व की असली शक्ति भी हैं…

Saturday, October 22, 2011

इस जुनून को सलाम

दिल में देशभक्ति और शहीदों के लिए कुछ करने का जज्बा हो तो इंसान को घर-परिवार नहीं बांध सकता। वह सबकुछ छोड़ इसी में जी-जान से जुट जाता है। अपना जीवन देशसेवा के लिए अर्पित कर देता है। देश के लिए ऐसे ही जुनून से जुटने वाले एक शख्स हैं हीरालाल यादव। वैसे तो वे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के कौड़ीराम के निवासी हैं, लेकिन पूरा परिवार मुंबई में रहता है। वैसे उन्हंें एक क्षे़त्र के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। क्योंकि वह पूरे देश के हैं। हीरालाल पूर्वांचल की माटी के वह हीरा हैं, जो अपनी चमक पूरे देश में फैला रहे हैं। संघर्षों के बल पर मुकाम हासिल करने वाले इस शख्स ने अब अपना पूरा जीवन देश की हिफाजत में शहीद हुए लोगों को समर्पित कर दिया है। ये देशभर में शहीदों के घर जाते हैं और उनके दुःखों को साझा करते हैं। 26-11 की आतंकी घटना में शहीद एनएसजी कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन के घर भी ये पहुंचे। उनके पिता से मिले तो वे काफी प्रभावित हुए। दोनों ने इंडिया गेट से गेटवे आफ इंडिया तक साइकिल यात्रा भी की। इस यात्रा के दौरान वह जिन शहरों से गुजरे, वहां लोगों ने शहीद पिता के लिए पलक पांवड़े बिछा दिए। लोग पैर छूते थे। ऐसा नजारा देख उन्नीकृष्णन के पिता को यह अहसास हुआ कि उन्होंने बेटा खोया नहीं है। हीरालाल इस तरह की अब तक 35 यात्राएं कर चुके हैं। शहीदों और देशप्रेम के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए दर्जनों जगह अपनी कविताओं, शहीदों के पत्रों आदि की प्रदर्शनी लगा चुके हैं।
हीरालाल यादव के संघर्षों की एक लंबी दास्तां है। 1980-81 में गोरखपुर यूनिवर्सिटी से एमए करने के बाद वह नौकरी की तलाश में उधार रूपये लेकर मुंबई गए। यहां फल बेचना शुरू किया। एक मिल में 5 रूपये रोजाना पर काम भी किया। इसी दौरान उन्हें लोकल ट्रेन में एक 17 साल का लड़का मिला। वह ठीक से बोल नहीं पाता था। वह पीलीभीत का रहने वाला था। वह पांच माह के प्रयास के बाद उन्होंने उसे उसके घर पहुंचाया। तब उन्हें लगा कि वह दुनिया का कोई भी कार्य कर सकते हैं।
1997 में आजादी की स्वर्ण जयंती वर्ष में सबसे पहले मुंबई से शहीद भगत सिंह के गांव साइकिल यात्रा की। यह यात्रा 82 दिन की थी। यह मदर टेरेसा को भी समर्पित रहा। इस यात्रा के दौरान वह बाघा बार्डर, जम्मू, जलियावालाबाग आदि जगहों पर गए। लोगों को देशभक्ति और शहीदों के बारे में बताया।
इस सफलता के बाद 1998 में उन्होंने नशा निशेध संकल्प यात्रा शुरू किया। इसकी यात्रा की प्रेरणा उन्हें खुद से मिली। वह बताते हैं कि बहुत सिगरेट, बीड़ी पीते थे। एक दिन उनका छोटा बेटा जो करीब चार साल का था, वह भी मुंह में बीड़ी लगाए  था। यह देख वह सकते में आ गए। इसी के साथ उन्होंने नशा छोड़ दिया और इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए चल पड़े। 103 दिन की यात्रा में वह देश के चार महानगरों मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और चेन्नई गए।
1999 में कारगिल युद्व में शहीद सैनिकों को श्रद्वांजलि देने के लिए सलाम सैनिक यात्रा शुरू की। 42 दिन तक चली इस यात्रा को बहुत सफलता मिली। यात्रा के दौरान वह कारगिल शहीद के कई परिवारों से मिले। इसमें राजस्थान के दो शहीदों को याद करते हुए वह बताते हैं कि जयपुर के कैप्टन अमित भारद्वाज अपने खानदान के पहले व्यक्ति थे जो सेना में गए और देश के लिए शहीद हो गए। उनका शव शहीद होने के 56वें दिन घर पहुंचा। कुछ इसी तरह शहीद स्क्वायडन लीडर अजय आहूजा की कहानी है। वह कोटा राजस्थान के निवासी थे।
चैथी 12 दिन की छोटी यात्रा बाबा आम्टे के लिए निकाली। पांचवीं अन्ना हजारे के लिए निकाली।  छठवीं यात्रा के दौरान वह थाइलैंड, वियतनाम, कंबोडिया और लाओेस तक गए। युद्वबंदियों के लिए भी वह यात्रा निकाल चुके हैं। वह कहते हैं कि 71 के भारत-पाक युद्व में भारत को तो विजय मिल गई, लेकिन बहुत से युदबंदियों को रिहा नहीं कराया जा सका। वह आज भी पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं। कई तो वहीं मर गए। 2006 में इनके लिए निकाली यात्रा में वह युद्वबंदियों के 10-12 परिवारों से मिले। इस यात्रा के दौरान वह मुंबई, अंडमान निकोबार, कोलकाता, रांची आदि जगहों पर गए।
इसी जुनून में 24 मई 2010 को हीरालाल 26-11 को मुंबई में आतंकियों से लोहा लेते हुए ताज होटल में शहीद होने वाले एनएसजी कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन घर बंगलुरु पहुंचे। संदीप के पिता ने अपनी पीड़ा हीरालाल से कही। हीरालाल ने बताया कि जब संदीप के पिता को उन्होंने अपने मिशन के बारे में बताया तो उन्होंने मेहमान के रूप में घर में ही रहने को कहा। उन्होंने वहां संदीप के नाम का एक पीपल का पौधा भी लगाया। जब वह उनके घर से निकलने लगे तो 10 किमी साइकिल चलाकर उन्हें सड़़़क तक छोड़ने आए। तभी उन्होंने लंबी साइकिल यात्रा की इच्छा जताई। प्रस्ताव मिलने पर उन्होंने 26 अक्टूबर से 26 नवम्बर 2010 को इंडिया गेट से एक साथ साइकिल यात्रा शुरू की। दोनों एनएसजी के मुख्यालय से पलवल, आगरा होते हुए पूना पहुंचे। उसके बाद गेटवे आफ इंडिया के पास ताज होटल गए। जिस कमरे में संदीप को गोली लगी थी। वहां पर उन्होंने दिनभर उसी कमरे में रहकर उपवास भी रखा। इस यात्रा में उन्हें बहुत ही सफलता मिली। हर जगह लोगों का हुजूम इनका स्वागत करने के लिए पहुंच जाता था। लोग शहीद पिता के पैर छूते थे।
हीरालाल इसके अलावा अपनी कविताओं के जरिए भी देशभक्ति के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। युद्वबंदियों की पीड़ा का विषय इनकी कविताओं में होता है। यह अपनी कविताओं, शहीदों पत्रों, फोटो आदि की प्रदर्शनी भी स्कूलो, यूनिवर्सिटी आदि जगहों पर लगाते हैं। अब तक वह करीब 165 जगह प्रदर्शनी लगा चुके हैं। उनके इसी काम को देखते हुए पिछले दिनों उन्हें गोरखपुर के बड़हलगंज में आयोजित सरयू महोत्सव में सरयू रत्न से सम्मानित किया गया।
हीरालाल बताते हैं कि देश और देश के लिए शहीद हुए लोगों के लिए काम कर अच्छा लगता है। इसी काम के जुनून में वह अपना परिवार मुंबई में छोड़ चुके हैं। दो बेटे हैं। एक बेटा एचडीएफसी बैंक में काम करता है। दूसरा एनिमशन का कोर्स कर रहा है। वह अपना खर्च खुद निकालता है। पत्नी मुंबई में फल का स्टाल लगाती है। अपना पूरा जीवन देश और शहीदोें के लिए समर्पित कर चुके हीरालाल चाहते हैं कि सभी में देशभक्ति की भावना जगे। सभी देश के लिए आगे आएं। 

Saturday, September 17, 2011

बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे युवा

गुड़गांव, जागरण संवाद केंद्र :
पेशे से इंजीनियर या फिर प्रबंधक बन गए लोगों में अपने कॅरियर को और ऊंचे आयाम देने की होड़ मची रहती है, लेकिन शहर के कुछ युवा इस प्रतिस्पर्धा की दौड़ से निकल कर शिक्षा का अलख जगाने की दिशा में कार्य कर रहे है। प्रनीत, सुशील व उनकी पत्नी सोनाली सक्सेना के अलावा उनका एक पूरा ग्रुप है, जो मिलकर उन बच्चों के लिए काम करते हैं जो शिक्षा से वंचित हैं।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) में कार्यरत प्रणीत सिन्हा का कहना है कि उन्होंने जब देखा कि शिक्षा का अधिकार मिलने के बावजूद बच्चे स्कूलों से दूर हैं व मजदूरी तथा भीख मांगने जैसे काम कर रहे हैं तो उन्होंने उनके लिए कुछ करने की सोची और जुट गए इन्हें शिक्षा से जोड़ने के काम में। 'प्रयत्न' नाम के इस ग्रुप के सदस्यों ने मिलकर मुलाहेड़ा के बच्चों के स्कूलों में दाखिले करवाए। प्रणीत के मुताबिक यह दाखिले दिलवाने के लिए उन्हें बहुत लड़ाई लड़नी पड़ी तथा स्कूलों के मुखिया तथा शिक्षकों के रवैये को देखकर वे काफी हैरान भी हुए। प्रणीत का गु्रप छुट्टी वाले दिन इन बच्चों को अंग्रेजी तथा कंप्यूटर जैसी चीजें सिखाता है। सोनाली सक्सेना पीएचडी हैं, लेकिन अपने काम के साथ वे इन बच्चों को शिक्षित व जागरूक करने का काम करती हैं। उनका कहना है कि खासकर गुड़गांव में बाहर से आए 'माइग्रेंट्स' के लिए शिक्षा की डगर कितनी कठिन है इस बात का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता, लेकिन उन्होंने यह चीजें झेली हैं। उनका कहना है कि स्कूल के मुखिया लाख मनाने पर भी आरटीई की अनदेखी करके इनसे शिक्षा के अधिकार से वंचित करते हैं तथा इनका दाखिला नहीं लेते। जिला शिक्षा अधिकारी, उपायुक्त समेत कई अधिकारियों से मिलने पर भी इन बच्चों के दाखिले में बाधाएं आ रही हैं तो अगर केवल बच्चे या माता पिता स्कूल में जाएं तो उन्हें क्या रिस्पांस मिलता होगा।
प्रणीत के साथ सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल तथा प्रबंधन करके निकले छात्र आयुष बंसल सरीखे कई अन्य युवा भी इस तरह का काम कर रहे हैं।